शीर्षक: “जब दुख असहनीय हो गया: एयर इंडिया हादसे के पीड़ितों के परिजन बोले – अवशेष नहीं चाहिए, हमें इंसाफ चाहिए”
अहमदाबाद, 16 जून 2025:
एयर इंडिया के भीषण विमान हादसे के बाद पूरे देश में शोक की लहर है, लेकिन उससे भी अधिक गहराई से जख्म उन परिवारों में हैं, जिन्होंने अपने प्रियजनों को इस दुर्घटना में खोया है। अब हादसे के बाद एक और गंभीर मोड़ आया है – कई पीड़ित परिवारों ने मृतकों के अवशेष (remains) लेने से इनकार कर दिया है।
परिवारों की मांग: “हम साथ आए थे, साथ ही विदा होंगे”
इस दर्दनाक हादसे में जान गंवाने वाले कई यात्री दंपत्ति या परिवार के सदस्य थे। गुजरात के पटेल दंपत्ति के परिवार ने मीडिया से कहा – “जब वे जीवन भर साथ रहे, तो अब उनकी अंतिम यात्रा भी साथ ही होनी चाहिए। हम उनके अवशेष तब तक नहीं लेंगे जब तक दोनों की पहचान पूरी न हो जाए।”
यह भावना सिर्फ पटेल परिवार तक सीमित नहीं है। कई परिवारों ने भावुक अपील की है कि वे एक साथ अंतिम संस्कार करना चाहते हैं, न कि बिखरे हुए अवशेषों के साथ।
अस्पतालों में अफरा-तफरी का माहौल
अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कई परिवार तीन दिन से डेरा डाले हुए हैं। डीएनए मिलान की प्रक्रिया में देरी होने से गुस्सा और हताशा दोनों बढ़ रहे हैं। कुछ परिवारों ने आरोप लगाया कि एयर इंडिया और सरकारी एजेंसियां उन्हें “ठोस जानकारी” नहीं दे रही हैं।
एक परिजन ने कहा, “हमें सिर्फ एक बॉक्स दे दिया गया और कहा गया कि इसमें आपके भाई के कुछ अवशेष हैं। हम कैसे मान लें?”
डीएनए जांच: तकनीकी बाधा या लापरवाही?
अधिकारियों का कहना है कि शवों की हालत बेहद क्षतिग्रस्त थी, जिससे पहचान मुश्किल हो गई। अब तक सिर्फ 32 पीड़ितों की पहचान की जा सकी है, जिनमें से सिर्फ 14 के अवशेष सौंपे गए हैं।
डीएनए मिलान में 72 घंटे लग सकते हैं, पर विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया तेजी से हो सकती थी अगर पहले से पर्याप्त तैयारी होती।
मानसिक आघात और सामाजिक पीड़ा
धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं भी इस स्थिति को और संवेदनशील बना रही हैं। कई परिवारों का मानना है कि बिना पूरे शरीर के अंतिम संस्कार अधूरा है। एक वृद्ध महिला, जिनका बेटा इस हादसे में मारा गया, ने कहा, “मैं बेटे का चेहरा देखे बिना अंतिम संस्कार कैसे करूं?”
सरकार और एयर इंडिया की प्रतिक्रिया
टाटा समूह ने मृतकों के परिजनों को 1 करोड़ का मुआवज़ा और अतिरिक्त 25 लाख रुपए की सहायता देने की घोषणा की है। वहीं, DGCA और एयर इंडिया ने कहा है कि जांच प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता से चल रही है, और ब्लैक बॉक्स की फॉरेंसिक रिपोर्ट जल्द ही सार्वजनिक की जाएगी।
तीन महीने में रिपोर्ट का वादा, पर क्या मिलेगा इंसाफ?
ब्लैक बॉक्स और फ्लाइट रिकॉर्डर से जो डाटा निकाला जा रहा है, उससे यह तय होगा कि हादसे की असली वजह क्या थी—तकनीकी खराबी, पायलट त्रुटि, या मौसम की कोई अनदेखी?
लेकिन जब सवाल परिवारों के दर्द का है, तो उनके लिए हर दिन एक यातना है।
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निष्कर्ष:
इस हादसे ने न सिर्फ जानें लीं, बल्कि उन परिवारों की उम्मीदें, आस्था और विश्वास भी छीन लिया। अवशेष लेने से इनकार एक भावनात्मक विद्रोह है – यह सिस्टम से सवाल है, न्याय की मांग है।
अब सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था इन परिवारों को सिर्फ मुआवज़ा देगी या असली न्याय भी?
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