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“उस दिन मेरे शिक्षक दूल्हा थे” – एक छात्र की आँखों से खान सर की रिसेप्शन पार्टी
पटना, 28 मई 2025।
मैं भीड़ में खड़ा था, लेकिन मन में एक ही सवाल गूंज रहा था — क्या सचमुच आज मेरे सर दूल्हा हैं?
मैं एक साधारण छात्र हूँ — एक छोटे से गाँव से आया हुआ, संघर्षों से भरी ज़िंदगी जीता हुआ। मेरी पढ़ाई की नाव जो आज तक बह रही है, उसका एकमात्र सहारा खान सर हैं। आज जब उन्हें विवाह के बाद पहली बार एक मंच पर बैठे देखा, तो वह सिर्फ मेरे शिक्षक नहीं लगे — वे हमारे जैसे लाखों छात्रों की उम्मीदों का जीवंत रूप बन गए थे।
एक ऐसा मंच, जहाँ शिक्षक ही सितारा था
पटना के बाहरी इलाके में एक साधारण लेकिन सुसज्जित लॉन में यह रिसेप्शन आयोजित किया गया था। कोई भारी-भरकम डेकोरेशन नहीं, कोई फिल्मी धूमधड़ाका नहीं — सिर्फ एक सादा मंच, गुलाब के फूलों की साज-सज्जा, और सामने बैठे दो चेहरे, जिनमें सौम्यता और सादगी थी।
खान सर पारंपरिक क्रीम रंग की शेरवानी और हल्के गुलाबी साफे में बेहद गरिमामय लग रहे थे। उनकी पत्नी, जिनकी मुस्कान ही उनकी पहचान थी, लाल बनारसी साड़ी में पारंपरिक भारतीय सुंदरता की मिसाल थीं।
रिसेप्शन, जो छात्रों के लिए समर्पित था
आम रिसेप्शन पार्टियों में रिश्तेदारों और अधिकारियों की भीड़ होती है। लेकिन यहाँ छात्रों की कतारें थीं — वे छात्र, जिन्होंने खान सर से पढ़ा था, या जिनकी पढ़ाई में उन्होंने किसी न किसी रूप में योगदान दिया था। किसी को विशेष निमंत्रण नहीं भेजा गया था, लेकिन जैसे सबका नाम पहले से तय था।
एक बुजुर्ग चपरासी भी आए थे, जिनके इलाज का खर्च खुद खान सर ने उठाया था। वे एक कोने में बैठकर चुपचाप भोजन कर रहे थे, लेकिन उनकी आँखों में गर्व की चमक थी।
पारंपरिक स्वाद, आधुनिक संदेश
खान सर के रिसेप्शन में जो भोज परोसा गया, वह किसी भी आलीशान शादी से अलग था। लिट्टी-चोखा, मटर-कचौड़ी, रसगुल्ला और छाछ — सब कुछ मिट्टी के कुल्हड़ों और पत्तलों में परोसा गया। हर व्यंजन के पास एक छोटा सा संदेश लिखा था, जैसे —
“यह स्वाद हमारी मिट्टी की कहानी है।”
“यह भोजन सिर्फ पेट नहीं, आत्मा को तृप्त करता है।”
यह साफ़ था कि यह सिर्फ खाना नहीं था, बल्कि खान सर की विचारधारा का विस्तार था।
कोई भाषण नहीं, बस एक पंक्ति
शाम ढलते-ढलते, जब कुछ मेहमान वापस लौटने लगे, तब खान सर पहली और आख़िरी बार मंच पर आए। उन्होंने माइक संभाला, मुस्कुराए, और सिर्फ एक पंक्ति कही:
> “अगर मैंने कभी कुछ सिखाया है, तो आप सबका यहां आना उसी शिक्षा का प्रमाण है।”
यह वाक्य मेरे दिल में उतर गया। उस क्षण लगा, हम सिर्फ एक शिक्षक की शादी में नहीं, बल्कि एक आंदोलन की साक्षी बन रहे हैं।
निष्कर्ष: यह शादी नहीं, एक जीवंत विचार थी
खान सर की रिसेप्शन पार्टी न तो मीडिया का तमाशा थी, न ही सेलिब्रिटी शो। यह एक ऐसे व्यक्ति का आयोजन था जिसने शिक्षा को सिर्फ रोज़गार का साधन नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने का माध्यम बना दिया।
आज जब कोई मुझसे पूछता है — “क्या तुम उस रिसेप्शन में थे?”
तो मैं गर्व से कहता हूँ —
“हाँ, उस दिन मेरे शिक्षक दूल्हा थे। और मैं सिर्फ दर्शक नहीं, उस क्षण का हिस्सा था।”
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अगर आप चाहें तो मैं इसी शैली में खान सर की शादी, हल्दी, या मेहंदी समारोह पर भी एक्सक्लूसिव, साहित्यिक और अनोखई
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